Friends I wrote this story in Hindi but its an interesting story.
आपने संपत्ति के विवाद से संबधित कई किस्से सुने होंगे... लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि राज्य की पुलिस ही संपत्ति पर गैरकानूनी कब्ज़ा कर ले.. और उससे भी ज्यादा हैरानी इस बात पर हो कि राज्य पुलिस की इस करतूत पर राज्य सरकार उसका साथ दे और संपत्ति को अपना कहते हुए अदालतों में मुकदमे ठोक दे? इसके बाद राज्य सरकार और पुलिस मिलकर मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दें...
जस्टिस दलवीर भंडारी और जस्टिस दीपक वर्मा की सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में हरियाणा सरकार पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाते हुए राज्य सरकार की एक अपील को खारिज कर दिया है... अपनी अपील में Superintendent of Police ने ये मांग की थी कि गुड़गांव की हिदायतपुर छावनी में 8 बिस्वा ज़मीन का मालिकाना हक राज्य सरकार को दे दिया जाए.. लेकिन मुकेश कुमार नाम के व्यक्ति कि इस ज़मीन पर हरियाणा पुलिस ने गैरकानूनी कब्जा कर रखा था और Superintendent of Police चाहते थे कि प्रतिकूल कब्जे के आधार पर राज्य सरकार को इस संपत्ति का मालिकाना हक दे दिया जाए.. इस ज़मीन को राज्य पुलिस के लिये काम में लाया जा रहा था..
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में हरियाणा सरकार ने ये अपील की थी कि इस ज़मीन से संबधित 26 मार्च 1990 की सेल डीड और फिर 22 नवंबर 1990 को हुआ म्यूटेशन रद्द कर दिया जाए... साथ ही राज्य सरकार ने ये भी मांग की कि निचली अदालत के उस फैसले को भी रद्द कर दिया जाए जिसमें इस ज़मीन का मालिकाना हक इसके असली मालिकों को दे दिया गया था... आपको ये जानकर हैरानी होगी की निचली अदालत ने इस बात को माना था कि राज्य सरकार इस ज़मीन का मालिकाना हक साबित नहीं कर पायी थी और निचली अदालत ने राज्य सरकार के उपर पच्चीस हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया था...
इसी मामले में फैसला देते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य की जिम्मेदारी नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करना है लेकिन इस मामले में ये साफ तौर पर दिख रहा है कि किस तरहं राज्य सरकार ने अपने ही नागरिक कि ज़मीन को हथियाने की कोशिश की.. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस कदम को निंदनीय और शर्मनाक बताया था...सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा "...निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले के बावजदू ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि कानूनी पेजीदगियों का फायदा उठाते हुए राज्य सरकार इस ज़मीन पर किये गये गैरकानूनी कब्जे़ को छोड़ने को तैयार नहीं है..."
अपने फैसले में कोर्ट का कहना था कि ज़मीन के रिकार्डस से ये पता चलता है कि ज़मीन का मालिकाना हक बचाव पक्ष के लोगों के नाम पर था.. ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि Superintendent of Police जोकि भारतीय पूलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं उन्होनें बार बार अदालतों में अपील डालते हुए इस संपत्ति को हड़पने की कोशिश की ..
कोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर इसी तरहं से काम किया गया तो आम नागरिकों का उस पुलिस पर से भरोसा उठ जाएगा जिसकी जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखे। कोर्ट का कहना था कि इस तरहं के कृत्यों पर फौरन रोक लगाने की ज़रुरत है... सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक किसी भी सरकारी विभाग खासकर पुलिस को इस तरहं से संपत्ति पर गैरकानूनी कब्ज़ा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए...इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि प्रतिकूल कब्ज़े से संबधित कानून में जल्द बदलाव किये जाने की ज़रुरत है...अदालत ने इस फैसले की कॉपी को कानून मंत्रालय के पास भी भेजा है ताकि कानून में बदलाव पर विचार किया जा सके
आपने संपत्ति के विवाद से संबधित कई किस्से सुने होंगे... लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि राज्य की पुलिस ही संपत्ति पर गैरकानूनी कब्ज़ा कर ले.. और उससे भी ज्यादा हैरानी इस बात पर हो कि राज्य पुलिस की इस करतूत पर राज्य सरकार उसका साथ दे और संपत्ति को अपना कहते हुए अदालतों में मुकदमे ठोक दे? इसके बाद राज्य सरकार और पुलिस मिलकर मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दें...
जस्टिस दलवीर भंडारी और जस्टिस दीपक वर्मा की सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में हरियाणा सरकार पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाते हुए राज्य सरकार की एक अपील को खारिज कर दिया है... अपनी अपील में Superintendent of Police ने ये मांग की थी कि गुड़गांव की हिदायतपुर छावनी में 8 बिस्वा ज़मीन का मालिकाना हक राज्य सरकार को दे दिया जाए.. लेकिन मुकेश कुमार नाम के व्यक्ति कि इस ज़मीन पर हरियाणा पुलिस ने गैरकानूनी कब्जा कर रखा था और Superintendent of Police चाहते थे कि प्रतिकूल कब्जे के आधार पर राज्य सरकार को इस संपत्ति का मालिकाना हक दे दिया जाए.. इस ज़मीन को राज्य पुलिस के लिये काम में लाया जा रहा था..
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में हरियाणा सरकार ने ये अपील की थी कि इस ज़मीन से संबधित 26 मार्च 1990 की सेल डीड और फिर 22 नवंबर 1990 को हुआ म्यूटेशन रद्द कर दिया जाए... साथ ही राज्य सरकार ने ये भी मांग की कि निचली अदालत के उस फैसले को भी रद्द कर दिया जाए जिसमें इस ज़मीन का मालिकाना हक इसके असली मालिकों को दे दिया गया था... आपको ये जानकर हैरानी होगी की निचली अदालत ने इस बात को माना था कि राज्य सरकार इस ज़मीन का मालिकाना हक साबित नहीं कर पायी थी और निचली अदालत ने राज्य सरकार के उपर पच्चीस हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया था...
इसी मामले में फैसला देते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राज्य की जिम्मेदारी नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करना है लेकिन इस मामले में ये साफ तौर पर दिख रहा है कि किस तरहं राज्य सरकार ने अपने ही नागरिक कि ज़मीन को हथियाने की कोशिश की.. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस कदम को निंदनीय और शर्मनाक बताया था...सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा "...निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले के बावजदू ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि कानूनी पेजीदगियों का फायदा उठाते हुए राज्य सरकार इस ज़मीन पर किये गये गैरकानूनी कब्जे़ को छोड़ने को तैयार नहीं है..."
अपने फैसले में कोर्ट का कहना था कि ज़मीन के रिकार्डस से ये पता चलता है कि ज़मीन का मालिकाना हक बचाव पक्ष के लोगों के नाम पर था.. ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि Superintendent of Police जोकि भारतीय पूलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं उन्होनें बार बार अदालतों में अपील डालते हुए इस संपत्ति को हड़पने की कोशिश की ..
कोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर इसी तरहं से काम किया गया तो आम नागरिकों का उस पुलिस पर से भरोसा उठ जाएगा जिसकी जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखे। कोर्ट का कहना था कि इस तरहं के कृत्यों पर फौरन रोक लगाने की ज़रुरत है... सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक किसी भी सरकारी विभाग खासकर पुलिस को इस तरहं से संपत्ति पर गैरकानूनी कब्ज़ा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए...इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि प्रतिकूल कब्ज़े से संबधित कानून में जल्द बदलाव किये जाने की ज़रुरत है...अदालत ने इस फैसले की कॉपी को कानून मंत्रालय के पास भी भेजा है ताकि कानून में बदलाव पर विचार किया जा सके
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